Wednesday, May 18, 2011

लोकजीवन के विशारद हैं हृदयनारायण दीक्षित

शीला की जवानी और होली के रंगों में समूची तरबतर गंवई युवती में तालमेल बिठाती कलम की उम्र भले ही 40 की हो, लेकिन इसे पकड़ने वाले ने 18 मई को 66 का दरवाजा खटखटा दिया। अब इस सफर के दौरान कितनी छटपटाहट और कितना हठ संग-साथ रहा, यह शोध का विषय है। मेरे जेहन में पेंसिल के पेड़ की कल्पना करने वाली सोच के रचना कार से वेद, गीता जैसे संजीदा विषयों पर लगातार लिखने वाले हृदयनारायण दीक्षित से अधिक आदमी की आपदा के लिए चीखता-चिल्लाता लउआ जैसे गांव से लखनऊ आया हृदयनारायण हमेशा कुलबुलाया करता है।

कौन है यह हृदयनारायण? लल्लू से लेकर लॉटसाहब तक समाजवादी हुआ, सलाम करने वाला नेता, विधायक। या दारू पीकर टल्ली हुए दरोगा के भाई की बारात को मनुवादी लिखने वाला रचनाकार। या फिर मास्टर साहब के पाठशालाओं से गैरहाजिर रहने की सच्ची खबर देने वाला पत्रकार। इन सबसे अलग सामाजिक बिखराव, अलगाव, संन्यास और घुटन की व्यथाकथा से संवाद के पुल का निर्माण करके समाधान की सड़क बनाने वाला सामाजिक कार्यकर्ता। यह फैसला करना थोड़ा दिक्कततलब है। इसके लिए गांव गलियारों से लेकर भाजपा के दफ्तर तक ही नहीं, बल्कि बीते 40 साल के तमाम पन्नों को पलटना होगा।

18 मई को जन्मदिन पर बधाई देने वालों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ी होगी। दीक्षित जी को भी शायद अच्छा लगता होगा। लेकिन उनकी सुविधाओं की गलियों में कीचड़ से लथपथ गलियारे और उनके बीच भौंकते कुत्ते, रंभाती गाय-भैंस, कुओं पर पानी भरती भीड़, धुंआई झोपड़ियों के बगल में खेतों पर दुपहरिया का पसरा सन्नाटा और एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.. गाना रेडियो पर सुनता अधनंगा नौजवान बड़ी शिद्दत से शामिल है,जो उन्हें हैपी बर्थ डे तो नहीं कहते होंगे। फिर भी मुझे यकीन है इन संबंधों की मिठास उनमें नई ऊर्जा भरती होगी।

इसी ऊर्जा से भरे-पुरे हृदयनारायण दीक्षित दो नावों पर पैर रखने अपने 65वें पड़ाव को पार कर व्यवस्था की खामियों पर कलम चलाते हुए आध्यात्मिक प्रगतिशीलता के संवाहक बन गए हैं। इसे सीधे-सीधे लोगों की जुबान में कहूं तो कुछ यूं है- पंडित जी बहुत बढ़िया लिखते हैं या बहुत विद्वान हैं। दरअसल, राजनीति के जूते पहन कर सरस्वती की आरती गाना बड़ा ही कठिन है। मैंने ठीक यही बात उनके मंत्री होने के वक्त लिखी थी। आज फिर दोहराने का मतलब महज भावों के विस्फोट से उभरी आवाज भर नहीं, बल्कि सत्य का प्रतिफल है। एक सच और मेरी स्मृतियों के बंद किले से निकलकर मेरे सामने पसर गया है- दीक्षित जी को सिनेमा देखना बहुत अच्छा लगता है। इधर के दिनों का हाल तो नहीं पता, हां चार-पांच साल पहले वे सिनेमा प्रेमी थे। उन्होंने अपने लेखन में भी इसका भरपूर उपयोग किया। वे बात-बेबात माधुरी दीक्षित पर फिदा रहते थे। उनके इस माधुरी प्रेम से कइयों के साथ मुझे थोड़ा अटपटा लगा। जब सच सामने आया तो उनके पत्नी-प्रेम के अनोखे दृष्टिकोण की सराहना करने से खुद को रोक नहीं सका। दरअसल, उनकी पत्नी का नाम माधुरी दीक्षित है। उसी माधुर्य के पर्यावरण की रसमयी सोंधी गंध में डूबते-उतराते वे लोकजीवन के विशारद बन गए। उन पर लिखने के लिए मेरी स्मृतियों के किले में बहुत कुछ यहां-वहां बिखरा है। उसी से थोड़ा-बहुत समेटकर हर 18 मई को मित्र को प्रणाम कर लेता हूं।

Tuesday, May 10, 2011

लोकल कमेटी से लखनऊ नगर निगम तक का सफर

1857 की क्रान्ति के उपरान्त जन सुविधाओं के लिए लोकल कमेटी बनी।
तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर कैम्पवेल स्क्वायर कमेटी के पहले चेयरमैन बने।
कमेटी की पहली बैठक छतर मंजिल में हुई।
18 दिसम्बर 1861 में तत्कालीन कमिश्नर ने लोकल कमेटी का नाम बदलकर म्यूनिस्पल कमेटी कर दिया।
1884 मंे म्यूनिस्पल कमेटी का नाम बदलकर म्यूनिस्पल बोर्ड कर दिया गया।
तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर एच.डब्ल्यू हैस्टिंग बोर्ड के पहले चेयरमैन हुए।
1916 में एक्ट में संशोधन हुआ। पहली बार निर्वाचित मेयर के रूप में सैय्यद नवीउल्ला ने शपथ ली।
इसके बाद पंडित जगत नारायण, बाबू विश्वम्भर नाथ श्रीवास्तव, चौधरी खलीकुज्जमा, त्रिलोकनाथ भार्गव, नवल किशोर हलवासिया व पृथ्वीनाथ भार्गव शहर के प्रथम नागरिक बने।
1947 में आजादी के बाद जन निर्वाचित व्यवस्था समाप्त कर प्रशासक व्यवस्था लागू हुई।
1948  में आईसीएस अधिकारी भैरवदत्त सनवाल पहले प्रशासक बने। यह व्यवस्था 1958 तक रही।
1959 में राज्य सरकार ने उ.प्र. म्यूनिस्पल एक्ट के स्थान पर उ.प्र. महापालिका अधिनियम पारित किया और इसे नगर महापालिका नाम मिला।
1959 में ही चुनाव का रास्ता खुला।
फरवरी 1960 में पहले नगर प्रमुख के रूप में एडवोकेट राजकुमार श्रीवास्तव ने कुछ सभासदों के साथ शपथ ग्रहण की।
इसी वर्ष सरकार ने नगर प्रमुख का कार्यकाल एक वर्ष तय किया।
ऽ    2 फरवरी 1961 को गिरिराज रस्तोगी, 2 मई 1962 को डॉ. पी.डी. कपूर, 2 मई 1964 को कर्नल वेदरत्न मोहन तथा 2 मई 1965 को ओम नारायण बंसल नगर प्रमुख बने।
ऽ    जुलाई 1968 में नगर महापालिका चुनाव में मदन मोहन सिंह सिद्धू जीते।
ऽ    इसके बाद जुलाई 1969 में बालकराम वैश्य, जुलाई 1970 बेनी प्रसाद हलवासिया व पांच जुलाई 1971 को डॉ. दाऊजी गुप्त मेयर बने। श्री गुप्त तीन बार नगर प्रमुख रहे।
ऽ    जुलाई 1973 से अगस्त 1989 तक नगर महापालिका प्रशासक के हवाले रही।
ऽ    1989 में ही राज्य सरकार ने नगर महापालिका अधिनियम में संशोधन कर नगर प्रमुख का कार्यकाल एक से बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया।
  • 26 अगस्त 1989 को पहली बार डॉ. दाऊजी गुप्ता पांच वर्ष के लिए मेयर बने।
  • बाद में उनके स्थान पर 13 मई 1993 को अखिलेश दस नगर प्रमुख की कुर्सी पर बैठे।
  • 31 मई 1994 को नगर महापालिका को लखनऊ नगर निगम का दर्जा मिला।
  •  इसी वर्ष नगर प्रमुख का चुनाव सीद्दे जनता से कराने की व्यवस्था बनी।
  • एक दिसम्बर 1995 को डॉ. एस.सी.राय ने 9वें नगर प्रमुख के रूप में शपथ ली।
  • एक दिसम्बर 2000 में श्री राय ने 20वें महापौर के रूप में पुनः कुर्सी संभाली।
  • 21वें महापौर के रूप में डॉ0 दिनेश शर्मा नवंबर 2006 में विराजमान हुए।

अभी और चमकेगा तुलसीपुर

बलरामपुर। जिंदाबाद के नारे, गले में महकते फूलों की माला और पैर छूनेवाले समर्थकों की भीड़ से परे देखनेवाला नेता सिर्फ लोकप्रिय नहीं होता वरन् कर्म की व्यायामशाला में नियम से जोर आजमाइश करने को उतावला रहता है। ऐसा कहने वाले तुलसीपुर, नई बाजार के एक नागरिक ने अपने नगर पंचायत अध्यक्ष की शान में कई कसीदे पढ़ डाले। इस नागरिक विनय सिंह के अनुसार तुलसीपुर पवित्र भूमि है। यहां माता पाटेश्वरी देवी का निवास है, इसलिए चाहकर भी कोई नेता इस नगर के विकास से मंुह नहीं मोड़ सकता। यहां के चेयरमैंन अशोक सोनी उर्फ लल्ला भइया ने पानी, बिजली, सफाई के साथ सड़कों पर विशेष ध्यान दिया। इसके पीछे इस नगर में आनेवाले देशी-विदेशी श्रद्धालुओं की सुविधा उपलब्ध कराने की मंशा रही है। दरअसल देवीपाटन मंदिर में आनेवाले दर्शनार्थी यदि असुविधा महसूस करेंगे तो मातारानी को भी नागवार लगेगा। इसके अलावा माता के निवास पर अच्छा सेवादार हो तो उसे सर्वाशीष मिलता ही है।
    ‘प्रियंका’ ने भावी नगर निकाय चुनाव के चलते सूबे के पिछड़े माने जाने वाले नगर पंचायत क्षेत्रों के तहत राजधानी लखनऊ से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर तुलसीपुर क्षेत्र का चुनाव किया। यहां पहले मुलाकाती का नजरिया अपने नगर को सर्वोत्तम बताने का रहा। पन्द्रह वार्डों वाले नगर में इस समय लगभग 19 हजार मतदाता है। आबादी में मुसलमान व बनियों का अनुपात लगभग बराबरी का है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ व पिछड़े औसत अनुपात में हैं। किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका मुस्लिमों व बनियों की ही रहती है। यहां के देवी पाटन मंदिर के महंत नाथ सम्प्रदाय से हैं, जो गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर से जुड़े हैं। गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैधनाथ व उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ हिन्दू महासभा के प्रबल समर्थक हैं। योगी आदित्यनाथ भाजपा से सांसद हैं। इस दृष्टि से देवीपाटन मंदिर के महंथ की भूमिका प्रभावशाली रहती है। दूसरी ओर बहुबली मुस्लिम नेताओं का भी प्रभाव कम नहीं है।
    नगर पंचायत, अध्यक्ष 2006 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी छठे, कांग्रेस सातवें, भाजपा चौथे और सपा तीसरे नंबर पर रहे थे। दूसरे नंबर पर रहे फिरोज खान लगभग 900 वोटों से हारे थे। उस समय 16 हजार के लगभग मतदाता था। विजयी लल्ला भइया को 3600 के लगभग वोट मिले थे। बताने वाले बताते हैं कि उन्हें सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त रहा और है। इसी तरह पंचायत सदस्यों में पांच मुस्लिम सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। विकास कार्यों को लेकर इन सभी में तालमेल की तारीफ की जा सकती है। अब जहां नगर पंचायत का मौजूदा कार्यकाल समाप्त होने में सिर्फ छः महीने रह गये हैं, वहीं विकास योजनाओं को पूरा करने की ललक अभी भी इस नेता में बाकी है।
    नगर पंचायत अध्यक्ष अशोक सोनी जिन्हें लोग प्यार से लल्ला भइया पुकारते हैं का कहना है, ‘अभी तो बहुत काम बाकी है। इसी तरह जनसहयोग रहा तो सब होता जाएगा। मुझे 2006 में खाली खजाना, कर्मचारियों का भारी-भरकम बकाया, टूटी नालियों के साथ गढ्ढों से भरी-पुरी सड़कें, खराब पड़े स्ट्रीट लाइट के उपकरण व सूखे हैण्डपम्प विरासत में मिले थे। मैंने लगातार विकास कार्यों को प्राथमिकता दी, नतीजे सबके सामने हैं। आज किसी भी कर्मचारी का कोई बकाया नहीं है। उन्हें लगभग 70 लाख रूपयों का भुगतान किया गया। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए भी नियमित पेंशन भुगतान की व्यवस्था की गई है। इसी तरह खराब हैंण्ड पम्पों (इण्डिया मार्का) की मरम्मत करा कर उपयोगी बनाया गया। देशी हैण्डपम्प भी लगाये गये ताकि किसी भी वार्ड में पेयजल की किल्लत न होने पाये। सुदृढ पेयजल व्यवस्था के लिए 13वें वित्त आयोग की धनराशि से पांच हजार लीटर का टैंकर लिया गया। जलापूर्ति में बिजली के लो वोल्टेज को बाधक न बनने देने की गरज से सभी नलकूपों पर आवश्यक क्षमता वाले वोल्टेज स्टेबलाइजर लगवाए। इसी तरह नगर के मुख्य मार्गाें पर सोडियम लाइट की जगह 85 वॉट की सीएफएल फिटिंग लगवाई जा चुकी है।
    नगर के अन्य क्षेत्रों में भी सीएफएल लगाने का प्रयास जारी है। सफाई और कूड़ा उठाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किये गये, इसके लिए एक हाईड्रोलिक डाला भी खरीदा गया। सड़कों, नालियों की दशा सुधारने के लिए राज्य वित्त आयोग व पिछड़ा वर्ग अनुदान निधि का उपयोग किया गया। गलियों में इण्टरलाकिंग व सड़कों का निर्माण कराया गया। मच्छरों से बचने के लिए दो नई फॉगिंग मशीने खरीद कर पूरे नगर में फॉगिंग कराई जाती है। आज कम्प्यूटर का युग है, सो नगर पंचायत का अधिकतर कार्य कम्प्यूटर के जरिए होता है, जो बच रहा है उसे भी जल्द ही कम्प्यूटर से जोड़ दिया जाएगा। इसे आप यूं भी कह सकते हैं कि पूरी व्यवस्था पारदर्शी है।
    इस सबके बाद अभी नये नलकूप लगाने हैं, बीस केवीए का जेनरेटर लगाना है। नगर की पूरी सफाई को ठेका प्रणाली से कराना है। नगर के कई क्षेत्रों की सड़कों का चौड़ीकरण, गलियों में इण्टरलाकिंग व पुलिया से बाईपास तक नाले का निर्माण मेरे विकास कार्यों में है। मैंने जो काम किये हैं वो सारा शहर जानता है। सारा काम खुले आसमान के नीचे हैं। आप पूरा नगर स्वयं देख लें।’ चुनाव जून में हांेगे या आगे? के सवाल पर बोले, ‘यह तो सरकार की मंशा पर है। वैसे अभी तक मतदाता सूची ही दुरूस्त नहीं है।’ चुनाव मैदान में दोबारा उतरने के बारे में उनका जवाब था, जनता चाहेगी तो अवश्य चुनाव लड़ेंगे। देखिए मेरे द्वारा किये गये विकास कार्यों के अलावा जनता में मेरी छवि कैसी है, यह तो आप स्वयं देख-घूम कर जान सकते हैं। चुनाव तो आते-जाते रहते हैं, मैं तो जनसेवक हूँ और अपने नगर को भारत के मानचित्र पर चमकता हुआ देखना चाहता हूँ। मातारानी के आशीर्वाद से समूची दुनिया में तुलसीपुर का नाम जाना जाता है, सो माता की सेवा और उसके सेवकों की सेवा भावना व नगर के विकास का संकल्प ही मेरे लिए सर्वोपरि है।’
    नगर क्षेत्र में बहुत कुछ है, बाजार, मंदिर क्षेत्र, रेलवे स्टेशन आदि इसे आगे देखेंगे। पंचायत सदस्यों, नागरिकों का चुनाव के प्रति नजरिया भी परखेंगे। इसके साथ ही मतदाताओं की अपनी क्या आवश्यकताएं हैं व वे अपने नगर के लिए क्या चाहते हैं, भी जानेंगे।

जनाब! लखनऊ तो गंदा है!

लखनऊ। राजधानी के चमकते-दमकते शहरी इलाकों की आबादी ताजा आंकड़ों के मुताबिक 28 लाख हो गई हैं। इस बढ़ोत्तरी के साथ नागरिक सुविधाएं काफी पीछे हैं। पानी, बिजली, सड़क, सफाई, सीवर, यातायात, अस्पताल, परिवहन, जैसी सारी जरूरतों के लिए हाहाकार है। हां, शिक्षा क्षेत्र का पूरा जिम्मा निजी संस्थाओं ने ‘किराना स्टोरों’ की तरह उठा रखा है। लखनऊ शहर को चमकाने के लिए इस बरस अकेले नगर निगम ने 260 करोड़ खर्च करने का बजट रखा है। 2011-12 में जेएनएनयूआरएम योजना के 400 करोड़ सहित नगर निगम 887.37 करोड़ रूपए खर्च करेगा। इसमें शहर के विकास सफाई, स्ट्रीट लाइट, कूड़ा उठाने, शौचालय बनाने, पार्कों, कांजी हाउसों, मूर्तियों की स्थापना, रैन बसेरा के साथ अन्य मद होंगे। यहां बताते चलें पांच साल पहले 2006 में मौजूदा मेयर व पाषर्दाें को निगम में दाखिल होते ही खजाने में 9327 लाख व शासन द्वारा तुरंत दिये गये 4 करोड़ मौजूदे थे। निगम के पहले बजट में अकेले सफाई व कूड़ा निस्तारण के लिए 42 करोड़ खर्च किये गए थे। इस साल के बजट में 60 करोड़ खर्च करने के लिए हैं। नगर निगम के महापौर ने कुर्सी पर बैठते ही ‘स्वस्थ लखनऊ स्वच्छ लखनऊ’ का नारा दिया था। शुरूआती दौर में पार्कों के निर्माण से लेकर शौचालय, गलियों के सुधार, मार्गप्रकाश आदि में रूचि लेने के साथ आवारा जानवरों के लिए कान्हा उपवन जैसी योजनाओं पर काम हुआ। उप्र की सरकार बदली और सियासी दांव-पेंच में शहरी विकास उलझकर रह गया। घरों में कूड़ा उठाने के लिए यूजर चार्ज के नाम पचास रूपए की वसूली के प्रस्ताव को नगर निगम सदन ने इसी जनवरी में निरस्त कर दिया था। फिर भी 1 मई से इसे घरों से वसूल किया जाएगा। 15 दिन पहले गोमती नगर जन कल्याण महासमिति ने इसका विरोध किया है। इससे पहले शहर की कई कालोनियों से विरोध बुलंद हो चुका है। महापौर स्वयं यूजर चार्ज के विरोध हैं। वे तो निजी संस्था को कूड़ा उठाने का ठेका देने के भी विरोधी रहे। अफसरशाही और सत्तादल की मनमानी ने कई ऐसे फैसले लिए जो निर्वाचित महापौर और पार्षदों का मखौल उड़ाते दिखते हैं। पांच सालों में नगर निगम एक अरब से अधिक का कर्जदार हो गया। इस कर्ज पर महापौर का दुःख गए साल के बजट-सत्र में सबने देखा था। कुल मिलाकर शहर गंदा है, मच्छर भिनभिना रहे हैं, नालियां बजबजा रही हैं, कुत्ते, बंदर नागरिकों को काट रहे हैं, सांड़-गाय लोगों को दौड़ा रहे हैं। सफाईकर्मी मनमाने तरीके से गुर्राते हुए अपनी हाजिरी दस्तूरी देकर लगा रहे हैं। पार्षदों को भी इसी माहौल में अपना भला करने के साथ अगली पारी की व नागरिकों की कोई चिन्ता नहीं है।
    नगर निगम क्षेत्र के 110 वार्डों में 1957558 मतदाता हो गए हैं, जबकि पिछले चुनावों में 1689324 मतदाता थे, इनमें 763029 मतदाताओं ने ही वोट डाले थे। कुल 45.16 फीसदी मत पड़े थे। वहीं नगर पंचायतों में 78.1 प्रतिशत वोट पड़े थे। लखनऊ के महापौर डॉ0 दिनेश शर्मा (भाजपा) को 221713 वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रहे डॉ0 मंजूर अहमद (कांग्रेस) को 212410 वोट मिले थे। सपा की डॉ0 मधु गुप्ता 158918 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहीं थीं। डॉ0 दिनेश शर्मा की जीत के साथ लखनऊ महापौर सीट पर भाजपा की हैट्रिक हो गई थी। वहीं पांच सीटें खोकर भाजपा के 42 पार्षद जीते थे। सपा 31, कांग्रेस 23, निर्दलीय 14 सीटों पर काबिज रहे थे। इनमें साठ पार्षद पहली बार चुनाव जीते तो रमेश कपूर बाबा, नागेंन्द्र सिंह चौहान चौथी बार चुनाव जीते थे। गोविन्द पाण्डेय, हरसरन लाल गुप्ता (भाजपा), मो0 रिजवान, कामरान बेग, डॉ0 काशीराम यादव (सपा) व राजेन्द्र सिंह गप्पू (कांग्रेस) की हैट्रिक हुई थी। 323 महिला उम्मीदवारों कुल 39 ही जीत हासिल कर सकीं। इनमें भी 37 आरक्षित वार्डों से जीती थी। संभावित चुनाव में कहीं किसी नाम की चर्चा नहीं है, अलबत्ता बसपा ने अपना महापौर का प्रत्याशी अरूण द्विवेदी को तय कर दिया हैं।
    नगर निगम के पार्षदों ने शहर को संवारने के गुर जानने के लिए सिंगापुर में, तो अधिकारियों ने आंध्र और महाराष्ट्र में व महापौर ने विदेश में प्रशिक्षण लिया, फिर भी लाखनऊ गंदा है। आपके अखबार ‘प्रियंका’ ने कई बार लिखा ‘छिः.. कित्ता गंदा शहर है लखनऊ’, ‘ओ... शिट्.. कुत्ता का टट्टी’, ‘बंदर भी छेड़ते हैं लड़कियां,’ ‘गंदा है! गंदा है!! गंदा है!! लखनऊ’ लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं। गरमी ने दस्तक दे दी है, मच्छर, गंदगी और पानी की शुद्धता व किल्लत संक्रामक रोगों को दावतनामें बांटने की तैयारी में हैं। मच्छर शहर भर में हमलावर हैं, निगम अभी अमेरिका से फॉगिंग मशीने मंगवाने की कवायद में लगा है। इसी माहौल में नये महापौर और पार्षदों के चुनाव होंगे। और एक सच बात लिखे बगैर यह रपट पूरी नहीं होगी, लखनऊ में साक्षरता 80 फीसदी के लगभग है। यानी पढ़े-लिखे लोगों का शहर है, लखनऊ फिर भी इत्ता गंदा। नागरिकों को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी ही होगी। चुनाव तो हर पांच साल में होंगे लेकिन राजधानी संवारने के लिए पढ़े लिखे लोगों को वोट के साथ श्रमदान भी देना होगा।