Wednesday, April 27, 2011

देवीपाटन मन्दिर में सजता है माता पाटेश्वरी का दरबार

अजय श्रीवास्तव।
नवरात्र समाप्त हो गई, लेकिन माता पाटेश्वरी देवी मंदिर के चारो ओर एक किलोमीटर तक चैत्र मेला अभी भी जस का तस है। भक्तों की भीड़ लगातार उमड़ रही है। यह मेला बलरामपुर जनपद की पवित्र धरती पर माता पाटेश्वरी देवी के आशीर्वाद से समृद्ध है। जनपद मुख्यालय से लगभग तीस किलोमीटर तुलसीपुर में माता का देवीपाटन मंदिर है। विश्व प्रसिद्ध मंदिर को कई पौराणिक कथाओं के साथ सिद्धपीठ होने का गौरव प्राप्त है। यहां देश-विदेश से आने वाले भक्तों का तांता बारहोमास लगा रहता है। साल में दो बार चैत्र व शारदीय नवरात्र पर यहां विशेष उत्सव के साथ मेला लगा रहता है। इस समय माता के दर्शनार्थियों व उनके आशीषाभिलासियों की विशाल भीड़ रहती है।     मुख्यालय से बौद्ध परिपथ पर चल कर सड़क मार्ग अथवा रेल मार्ग से करीब 30 किलोमीटर की यात्रा करके तुलसीपुर पहुंचा जा सकता है। तुलसीपुर से सटे सिरिया नदी के किनारे ग्राम पंचायत देवीपाटन में प्राकृतिक छटा के बीच स्थित मॉ पाटेश्वरी देवी का यह मंदिर हजारों वर्षो से भक्तों के आस्था व विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। वर्तमान समय में मॉ पाटेश्वरी देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसका अपना एक विशेष महत्व है। कन्या कुमारी से लेकर बंगाल, बिहार सहित पड़ोसी देश नेपाल तक के श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए इस मंदिर पर अपना मत्था टेकने आते हैं। मंदिर पर मुख्यतः प्रसाद के रूप में चुनरी, नारियल आदि चढ़ाया जाता है। मन्दिर की विशिष्टता की ही वजह से इसे देवी पाटन के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मॉ पाटेश्वरी के इस पावन पीठ का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार दानवीर कर्ण ने भगवान परशुराम से इसी स्थान पर स्थित पवित्र सरोवर में स्नान कर शास्त्र विद्या की शिक्षा ली थी। एक अन्य कथा के अनुसार सती के पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में देवाधिदेव महादेव के अपमान से छुब्ध बिना बुलावे के ही आई उनकी पुत्री व भगवान शिव की पत्नी ने यज्ञ वेदी में कूद कर अपने प्राण दे दिए। इसकी सूचना मिलते ही कुपित भगवान शिव ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। भगवान शिव सती के शव को कन्धे पर लादकर उन्मत्त के समान यहां-वहां घूमने लगे। जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।
    देवताओं व ऋषियों के विनती पर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को 51 भागों में काटकर शिव से अलग कर उनके मोह को शान्त किया। धरती पर जहां-जहां देवी सती का अंग गिरा वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। उन्हीं शक्ति पीठों में से यह एक है। यहां पर माता सती का वाम स्कंध वस्त्र सहित गिरा था। एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने जब माता सीता को एक व्यक्ति द्वारा कलंक लगाने के बाद वन भेज दिया था। पुनः जब यज्ञ के घोड़ों को उनके पुत्रों लव एवं कुश के रोकने व उनसे युद्ध के बाद राम को जानकारी हुई। उन्होंने सीता से बात की तो माता सीता ने अपनी माता धरती से विनय किया कि यदि वह वास्तव में सती हैं तो यहीं धरती फट जाएं एवं धरती माता उन्हें अपने में समाहित कर लें। इतना कहते ही धरती फट गई एवं देखते ही देखते माता सीता धरती में समा गई। कहते हैं कि उसी स्थान से पाताला लोक को जाने के लिए रास्ता है। इसी गर्भगृह पर माता का भव्य मंदिर बना हुआ है। वर्तमान में नाथ सम्प्रदाय के मंहथ योगी कौसलेन्द्रनाथ जी महाराज यहां के महंथ व व्यवस्थापक है।

सियासी मोहल्लों में कोई हलचल नहीं!

लखनऊ। सियासत के मोहल्लों में निकाय चुनावों को लेकर कोई खास हलचल नहीं है। मौसम के मिजाज की तरह चुनावी पारा उतार-चढ़ाव पर है। सरकार की मंशा जुलाई में चुनाव कराने की बताई जाती है, लेकिन अभी तक सभासदों, वार्डों, अध्यक्षों व मेयरों के आरक्षण की सूची तक पूरी तरह से तैयार नहीं है। अप्रत्यक्ष चुनाव का बिल अभी तक राज्यपाल के यहां लटका है। ऐसे हालातों में सत्तादल निकाय चुनाव टाल भी सकता है, क्योंकि प्रत्यक्ष चुनाव होने से सत्तादल को कोई खास फायदा होता नहीं दिखता। इसके अलावा जुलाई से सितंबर तक बरसात व बाढ़ विभीषिका का भी बेहतर बहाना उसके सामने है। हालांकि सत्तादल शहरी दलितों को रोजगार के साथ बेहतर नागरिक सुविधाएं देने पर अमल करने के साथ समाज के अन्य वर्गों को भी लुभाने में लगा हैं हाल ही में वकीलों को 6 अरब का तोहफा दिया गया है। तमाम कवायद के बाद भी जहां विपक्ष में थोड़ी सुगबुगाहट सुनाई देती है, वहीं सत्तादल की खामोशी के पीछे का राज कहीं अक्टूबर में चुनाव होना तो नहीं है?
    गौरतलब है निकाय चुनावों में पौने तीन करोड़ से अधिक मतदाता 11,291 पार्षदों, सदस्यों, 423 नगर पंचायत अध्यक्षों, 194 नगर पालिका परिषद अध्यक्षों, 13 महापौरों का चुनाव करेंगे। इस चुनाव में लगभग 28 लाख बढ़ा हुआ युवा मतदाता भी भाग लेगा। पिछले चुनावों में बसपा को असफलता ही हाथ लगी थी। भाजपा का दबदबा नगर निगमों व निदर्लियों का नगरपालिका परिषदों, नगर पंचायतों पर रहा था। 2000 में 6, 2006 में 8 पर भाजपाई महापौर चुने गये थे। इधर बसपा शहरी क्षेत्र में दलितों को रिझाने में पूरी तरह सक्रिय है। दलित बस्तियों में पेयजल, सफाई, कूड़ा प्रबंधन का काम नगर विकास, बिजली का काम ऊर्जा, मैला प्रथा का निस्तारण का काम सूडा व डूडा तथा पेंशन का काम समाज कल्याण विभाग को करना होगा। इसके अलावा टीकाकरण, स्वास्थ्य योजनाएं, स्कूलों का निर्माण, छात्रवृत्ति, राशन कार्ड रोजगार सृजन, अल्पसंख्यक कल्याण के कार्यक्रम व मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाली योजनाओं का भी संचालन होगा।
    उप्र. के शहरों में पिछले चार सालों में केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के जरिए लगभग 12 सौ करोड़ रुपए के विकास कार्य कराये गये हैं। इन विकास कार्यों के नतीजे सिफर कहे जा सकते हैं। न पीने को पानी है, न बेहतर सड़कें हैं, न सफाई ही दुरूस्त है, न जलभराव से निजात मिली है। खुले में सात से दस फीसदी लोग शौच करने को मजबूर हैं। आवारा पशुओं का आतंक बदस्तूर है, कूड़ा-कचरा और मच्छर से शहरवासी पूर्ववत अक्रांत है। श्मशानघाट से लेकर नदी-नालों में कचरा-पॉलीथीन अटी पड़ी हैं। सड़कों पर अंधेरा है व यातायात की भीड़ से शहर दर शहर घायल और भयाक्रांत है। फिर भी नये कर थोपने व कमीशन-खोरी के चलते घरों से कूड़ा उठाने से लेकर सफाईकर्मियों की तैनाती तक में आम आदमी की जेब काटी जा रही है। गए साल लोकायुक्त ने भी निकायों को विकास के लिए दी जाने वाली धनराशि में चालीस से पचास फीसदी कमीशन के चलन पर चिंता जताई थी। शहरी आबादी लगातार बढ़ रही है और नागरिक सुविधाएं घट रही हैं।
    निकाय चुनाव फिर भी होंगे। अंडरखाने कवायद जारी हैं। हर किसी को इंतजार है सिर्फ तरीखों के एलान होने का, इसी नजरिये से ‘प्रियंका’ ने एक नगर पंचायत और एक नगर निगम का जायजा लिया है।

जलते मुर्दों के साथ ठुमके लगाती नर्तकियाँ

वाराणसी। भोले बाबा की नगरी काशी भी विचित्र परम्पराओं से भरी है। यहां दुनिया भर से आकर लोग गंगा भइया में डुबकी लगाकर धन्य हो जाते हैं। इस नगरी को स्वर्ग का द्वार भी कहा जाता है, शायद इसीलिए यहां रांड़, सांड़ और सन्यासी मोक्ष प्राप्ति के लिए बहुतायत में दिखते हैं। इसी धर्मनगर के बाबा महाश्मशान नाग मंदिर में एक तरफ लाशें जलती रहीं और दूसरी तरफ बार-बालाएं रात-रात भर नाचती रहीं। जलते मुर्दो के बीच नवरात्र भर नर्तकियों के ठुमके देखने पूरा शहर उमड़ता रहा। हर खास-ओ-आम के साथ पुलिस और जिले के जिम्मेदार हाकिम भी नर्तकियों के साथ ठुमके लगाते नजर आये। यह सब कुछ होता रहा परंपरा के नाम पर। इसकी दुहाई देकर वो भी बच निकलते हैं, जिनके कंधों पर समाज सुधारने की जिम्मेदारी होती है। यहां का दृश्य देखकर आपके रोंगेटे खड़े हो जाएंगे। एक तरफ लाश जलाई जा रही है, दूसरी तरफ ‘मुन्नी बदनाम हुई और टिंकू जिया’ जैसे गानों पर ठुमके लगते हैं।
    स्थानीय राजेश सिंह कहते हैं केवल नवरात्र में यह कार्यक्रम होता है। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक अकबर के मंत्री मानसिंह ने इस परंपरा की शुरूआत की थी। यहां स्थित शिव मंदिर मंे लोग मन्नत मांगते थे। इसे पूरा होने पर इस श्मशान के बीच घर की वधुएं नाचती थीं। चूंकि इस समय ऐसा होना संभव नहीं है, इसलिए लोग अपनी मन्नत पूरा करने के लिए कलकत्ता और मुंबई से बार बालाएं बुलाते हैं।

अण्डरपॉवर’ का आतंक!

लखनऊ। अपराध की दुनिया में मुंबइया सरगनाआंे की नामवरी ने समूचे देश में अपराधियों की एक अलग कौम पैदा कर दी है। सोने के तस्कर हाजी मस्तान और उसके हम कदमों के अलावा उसके शागिर्द दाऊद इब्राहीम के चेेले चांटों की एक बड़ी फौज हर तरफ सक्रिय है। इसके साथ ही शिवसेना से जुड़े रहे कई नामों में अरूण गवली उर्फ डैडी व छोटा राजन के गुर्गों का बोलबाला भी कम नहीं है। इनके वर्चस्व की जंग में हजारों शहीद हुए लोगों में उप्र के लोगों की संख्या भी सैकड़ों में है। आज भी उप्र में सक्रिय तमाम गरोहों के तार दाउद या छोटा राजन से जुुड़े हैं। हालांकि 58 साल की उम्र पार कर रहे दाउद पाकिस्तान में रहकर और 52 साल के छोटा राजन साउथ अफ्रीका में रहकर अपने-अपने गरोहों का संचालन कर रहे हैं, लेकिन पिछले कई सालों से इन दोनों ने सीधे किसी को धमकाया नहीं, न ही किसी से भारत में सीधे वसूली की बात की है। कहा जा रहा है कि अपनी उम्र के लिहाज, आरामतलबी व पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआई के साथ लश्करें तोइबा जैसे आतंकवादी संगठनों की गिरफ्त में रहने के कारण दाऊद अपने गुर्गों के जरिए ही काम करता हैं। छोटा राजन की एक किडनी खराब है और उसे डायलसिस पर रहना पड़ रहा है। इसी कारण उसे भी अपने गुर्गों का सहारा है। बावजूद इसके उप्र में इन दोनों की सक्रियता कम नहीं हुई है, भले ही अबु सलेम अलग हैं या भरत नेपाली मारा गया हो।
    इलाहाबाद में पिछले साल एक रसूखदार नेता पर बम से हुआ हमला या ठके-पट्टे को लेकर लगातार होने वाली हत्याएं। या हाल ही मंे लखनऊ में सीएमओ परिवार कल्याण डॉ0 बी.पी. सिंह की हत्या को भी इसी नजरिये से देखने में लगी है, लखनऊ पुलिस। हालांकि एक डिप्टी सीएमओ सहित कई गिरफ्तारियों के साथ पूर्वांचल के बाहुबलियों व सत्तादल से जुड़े कई नेताओं पर भी नजरें गड़ाए हैं पुलिस। अंदरखाने माफियाओं और राजनेताओं के ‘अंडरपॉवर’ वाले सभी गलियारों में छानबीन जारी है। पुलिस दावे ढेरों कर रही है, लेकिन पिछले सीएमओ डॉ0 विनोद आर्य की हत्या की गुत्थी आज तक अनसुलझी है। इससे भी अहम बात है महज (2 मार्च-2 अप्रैल-2011) तीस दिनों में अकेले राजधानी लखनऊ में चौबीस हत्याएं हो गईं। इनमें से एक का भी खुलासा नहीं हो सका है। हां, लीपापोती की कोशिशें जारी हैं।
    विपक्ष भी ऐसे मौके का फायदा उठाकर इन हत्याओं पर अपनी राजनीति चमकाने में लगा हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा ने एक स्वर में कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने के साथ अपराधियों व माफियाओं को समर्थन देने का आरोप सत्तादल बसपा पर लगाया है। सभी विपक्षी दलों ने जहां इस हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है, वहीं सरकार ने इसे ठुकरा दिया है। सरकार की मंशा जानकर विपक्ष उस पर लगातार हमलावर है। उसका कहना है यह हत्याकांड राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के नाम पर केन्द्र से आनेवाली हजारों करोड़ की रकम के बंटवारे को लेकर हुआ है। यह कोई अकेली घटना नहीं है और न ही फर्जी गुल-गपाड़ा मचाया जा रहा है, बल्कि कालाधन के बादशाह हसनअली के तार मुख्यमंत्री के घर पर तैनात रहे आइएएस विजय शंकर पांडे से जुड़े होने का ताजा खुलासा भी हुआ है। इसके अलावा सूबे के सभी मलाईदार महकमों मंे सत्तादल के मंत्री, विधायकों, सांसदों, बाहुबलियों के साथ बड़े माफियाओं का कब्जा है। खुलकर सरकारी पैसों की लूट जारी है। इसी लूट में जब भी कोई अड़ंगेबाजी होती है तो कभी इंजीनियर तो कभी डॉक्टर, तो कभी ठेकेदार, तो कभी राजनेता तक की हत्याएं हो जाती हैं। ऐसे में आम आदमी की सुरक्षा कैसे संभव हैं?
    सूबे की जेलों में बंद माफियाओं पर भी इन हत्याओं को लेकर सुगबुगाहट है। पिछले साल डॉ0 आर्य की हत्या के बाद लखनऊ जेल मंे बंद रहे फैजाबाद के एक सरगना से लम्बी पूछताछ हुई थी। डॉ0 सिंह की हत्या के बाद भी जेलों में बन्द बाहुबलियों समेत कई सरगनाओं पर पुलिस माथापच्ची कर रही है। एशिया के अपराधजगत में अपहरण उद्योग के बादशाह माने जाने वाले बबलू श्रीवास्तव के साथियों को भी खंगालने का मन बनाए हैं पुलिस के आलाधिकारी। हालांकि बबलू श्रीवास्तव के लोगों की सक्रियता सरकारी ठेकों में कम दिखती है। बबलू की टक्कर दाऊद इब्राहीम से है, तभी तो उसने छोटा राजन व अली बुंदेश से हाथ मिलाकर दाऊद का धंधा चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आज भी दाऊद के गुर्गों को ठिकाने लगाने में सक्रिय है।
    सूत्र बताते हैं बबलू ने नेपाल मंे सक्रिय दाऊद व आइएसआई के लिए काम करने वाले मिर्जा दिलशाद बेग, जमीम शाह सहित तीन लोगों की हत्याएं दो बरस पहले करा दी थीं। नतीजे में तमतमाए दाऊद ने बबलू की हत्या के लिए चार करोड़ की सुपारी मो0 सगीर के जरिये नेपाल में सक्रिय लश्करे तोइबा के ऑपरेशनल चीफ वसी अख्तर को दे दी। इसकी भनक उप्र खुफिया पुलिस को लगी, तब बरेली जेल में बंद बबलू की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। उसको पेशी के लिए लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी आदि के कोर्ट में ले जाने के लिए ‘वज्र वाहन’ का इस्तेमाल किया जाने लगा। इस विशेष ‘वज्र वाहन’ के साथ चालीस-पचास हथियारबंद जवान भी चलते हैं।    
    बबलू श्रीवासतव को जब अपनी सुपारी दिये जाने की खबर लगी तो उसने जेल से ही अपने नेटवर्क को सक्रिय किया। उसने अपने लोगों को वसी को नेपाल में व सगीर को कराची में घुसकर मारने का आदेश दिया। ऐसा ही हुआ भी, गए साल नवंबर के आखिरी सप्ताह में नेपाल के वीरगंज चौराहे पर वसी अख्तर को गोलियों से भून डाला गया। घायल वसी अस्पताल में एक हफ्ते मौत से लड़ते हुए हार गया। इसके एक महीना बीतने से पहले ही दिसंबर के दूसरे हफ्ते में कराची के गैबन में एक टी-स्टाल पर पहले से घात लगाए चार शूटरों ने मो0 सगीर को सरेआम भून दिया। कराची के एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक सगीर की लाश घंटों खुली सड़क पर पड़ी रही। इसी कड़ी में हाल ही में नेपाल में दाऊद के जाली नोटो का कारोबार संभालने वाले यूनुस अंसारी पर जेल के भीतर हमला हुआ है। ऐसे में यह कहना कतई गलत न होगा कि सूबे मंे माफिया, राजनेता व नौकरशाही की तिकड़ी के ‘अण्डर पॉवर’ का आतंक पूरे तौर पर जारी है।

बजेगा बाजा आयेगी बारात

मिथिलेश द्विवेदी
लखनऊ। नवसंवत्सर चार अप्रैल से शुरू हो गया लेकिन पूरे अप्रैल में विवाह के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं था। 15 मार्च से लगा खरमास 14 अप्रैल को खत्म हो गया। फिर भी विवाह के इच्छुक लोगों को 5 मई तक इंतजार करना होगा। 5 मई गुरूवार को पहला शुभ मुहुर्त है। बैशाख शुक्ल पक्ष की द्वितीया को रोहिणी नक्षत्र में विवाह करने वाले जोड़े भाग्यशाली माने जाते हैं। इसके बाद से विवाह का सिलसिला 17 जुलाई तक जारी रहेगा। मई में 17, जून में 19 और जुलाई में 17 शुभ मुहूर्त हैं। तीनों माह में कुल 53 दिन विवाह मुहूर्त के लिए अच्छे माने जा रहे हैं। अन्तिम विवाह मुहूर्त 10 जुलाई रविवार को पड़ेगा।
    11 जुलाई से हरिशयन दोष लग जाने के कारण जाड़ों में ही विवाह संभव हो सकेंगे। 2011 के नवम्बर व दिसम्बर में कुल 16 शुभ मुहूर्त हैं। इसके बाद द्दनु संक्रांति व खरमास दोष है। इस तरह मई से दिसम्बर 2011 तक कुल 69 दिन विवाह के लिए मिलेंगे। अप्रैल में कोई शुभ तारीख युवा दिलों के विवाह के लिए नहीं है।
    शादी-विवाह के इस मौसम में लोग-बाग करोड़ों खर्च करने के साथ अपनी शादी को यादगार बनाने में विश्वास करने लगे हैं। कोई हेलीकाफ्टर पर तो कोई गुब्बारे पर हवा में जयमाला डाल कर तो कोई शाक्तिपीठों पर फेरे लेकर अपनी शादी यादगार बना रहा है, तो कोई गिफ्ट में करोड़ों बांटकर। पिछले दिनों मेनका गांधी के बेटे सांसद वरूण गाधी ने वाराणसी में कांची के शंकराचार्य की पुरोहिताई में अपना विवाह कर उसे यादगार बनाया। इसी तरह साउथ दिल्ली के जौनापुर में कांग्रेस नेता कंवर सिंह तंवर के बेटे ललित तंवर सोहना के पूर्व विधायक सुखबीर सिंह जौनापुरिया की बेटी योगिता की शादी किसी शाही शादी से कम नहीं थी। इस शादी में कुल मिलाकर 100 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
    इससे पहले भी दुनिया में कई महंगी शादियां हुई हैं। ‘स्टील किंग’ लक्ष्मी मित्तल की बेटी वनिशा मित्तल का विवाह इन्वेस्टमेंट बैंकर अमित भाटिया से हुआ था। 18 नवंबर, 2006 को यह शादी फ्रांस में हुई थी। जिसमें 7.80 करोड़ डॉलर अर्थात तकरीबन 350 करोड़ रूपया खर्च हुआ था। शादी का निमंत्रण कार्ड चांदी का बना था और उसमें 20 पेज थे। इसमें 1000 लोगों ने शिरकत की थी और उन्हें 100 अत्यंत स्वादिष्ट  डिश पेश की गई थी। 18 फरवरी, 2006 को न्यूयॉर्क के एक होटल मालिक के बेटे विक्रम चटवाल और मॉडल -एक्ट्रेस प्रिया सचदेव विवाह के बंधन में बंधे तो मुंबई व उदयपुर से लेकर दिल्ली तक समारोह पूरे 10 दिन चला था। 26 देशों से 600 मेहमान प्राइवेट चार्टर्ड जेट से आए थे जिनमें बिल क्लिंटन, नाओमी कैंपबेल आदि प्रमुख थे। इस शादी पर दो करोड़ डॉलर अर्थात 90 करोड़ खर्च किए गए थे।
    फ्रांस के व्यवसायी बर्नार्ड आरनॉल्ट की बेटी डेलफाइन ने गांसिया वाइन वंश के एलेंसैंड्रों वैलेरिनों से 24 सितंबर 2005 को विवाह किया था।  डेलफाइन के गाउन को फैशन डिजाइनर जॉन गैलिआनों ने तैयार किया। इनके विवाह स्थल को 5000 सफेद गुलाब के पुष्पों से सजाया गया था। एलिजाबेथ हर्ले व कार्ल लैंगरफेल्ड ने इसमें शिरकत की थी। इस शादी में 32 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
    इसी साल दुनिया की एक और सबसे महंगी शादी होने जा रही है। ब्रिटेन के शाही घराने के अगले वारिस प्रिंस चार्ल्स के बेटे प्रिंस विलियम की शादी 29 अप्रैल में होनी है मंदी से जूझ रही ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को इस शादी से काफी उम्मीदें हैं। ब्रिटिश अर्थव्यवस्था इन दिनों भयंकर संकट के दौर से गुजर रही है। एक अनुमान के अनुसार इस शादी पर 4 करोड़ पौंड यानी 290.52 करोड़ रुपए खर्च होंगे। 28 साल के राजकुमार प्रिंस विलियम की शादी की तैयारियों का सिलसिला शुरू हो गया है। इससे पहले 1982 में विलियम की मां डायना और पिता चार्ल्स की शादी पर 29.04 करोड़ रूपए का खर्चा आया था, जबकि 2005 मंे चार्ल्स और कैमिला की शादी पर 50 लाख पौंड 50 अर्थात 36.32 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
    29 अप्रैल को होनेवाली प्रिंस विलियम और कैंट की शादी इन सभी को होनेवाली प्रिंस विलियम और केंट की शादी इन सभी को पीछे छोड़ देगी, इस शादी पर रिकार्ड पैसे बहाए जाने की संभावना है। इस शादी में दुनिया भर से लोग शामिल होंगे जिससे ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को एक अरब ब्रिटिश पौंड यानी 72.64 अरब रुपए मिलने की उम्मीद है। पर्यटन उद्योग को सबसे ज्यादा 75 करोड़ पौंड मिलने की संभावना है।

आया बिजली गुल होने का मौसम

लखनऊ। बिजली के बकाएदारों से चले वसूली अभियान में जहां हजारों कनेक्शन काटे गए, करोड़ों की राजस्व वसूली हुई, वहीं बिजली चोरी के नाम पर बड़े खेल हुए। मंत्री के निजी सचिव से लेकर कई बड़े-छोटे लोग पकड़े गए। खूब हल्ला मचा। बाद में सब ठीक हो गया। तमाम लाखों के बकाएदारों से महज कुछ हजार लेकर ही और छोटे बकाएदारों की बिजली काटकर वसूली कर्मकांड को पूरा कर लिया गया। 31 मार्च के नाम पर अधिकतर छोटे उपभोक्ताओं को ही त्रस्त किया गया। अब बिजली गुल होने की बारी आ गई है।
    अखबारों में अपना नाम छपवाने की गरज से या अपनी नेतागिरी चमकाने की गरज से बयान छपवाए गए कि बकाएदार किश्तों में भुगतान कर सकते हैं, लेकिन सामान्य उपभोक्ताओं की बात किसी भी अभियंता या बड़े अफसरों ने नहीं सुनी। हां, वीआईपी या उनके चहेतों को पूरी छूट मिली। उन्हें किश्तों का झंझट भी नहीं झेलना पड़ा, बस तत्काल थोड़ा बहुत भुगतान करने से ही चैन मिल गया। इससे भी बड़ा मामला फर्जी बिलिंग के जरिए पैसा कमाने का रहा। उपभोक्ताओं को मनमानी रीडिंग का बिल भेज दिया गया, फिर संशोद्दन के नाम पर अनाप-शनाप विद्युत मूल्य, सरचार्ज लगाकर पैसा वसूला गया। कई अधिशासी अभियंता स्तर के अधिकारी सामान्य शिष्टाचार भूलकर उपभोक्ताओं से समूची बदतमीजी, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान सीखी थी, पर अमल करते रहे।
    इससे भी दो कदम आगे बिजली कर्मचारी समय-समय पर घर-घर वसूली के दौरान बगैर रसीद दिए पैसा ले गए थे, उसे भी इस वसूली अभियान में नहीं माना गया, उल्टे पैसा देने वाला उपभोक्ता ही चोर साबित हो गया। अधिकारी अखबारों में बयान देते रहे कि कर्मचारियों को बगैर रसीद पैसा देने की लिखित शिकायत मिलने पर कार्रवाई अवश्य की जाएगी। सवाल यह है कि अब तक जो लिखित शिकायतें ऐसी विभाग को मिली हैं, उनमें क्या किया गया? यहां एक मजेदार बात और बताते चलें कि विभाग के पास करोड़ों के कम्प्यूटर हैं, मगर उनमें उपभोक्ताओं द्वारा जमा किए जाने वाले पैसांे का कोई ब्यौरा नहीं होता या यूं कहें विभाग के पास रिकार्ड नहीं होता? बड़े से लेकर छोटे अधिकारी तक उपभोक्ता से भुगतान जमा की रसीद मांगते हैं? और तो और बिल में प्रतिभूत की जमा रकम जो लगातार सहायक अभियंता राजस्व की निगरानी में दर्ज की जाती है, को भी विभाग के बाबू से लेकर बड़े अभियंता तक नकार देते हैं, यदि आपके पास जमा रसीद न हो! ऐसे ही सामान्य भुगतान में भी होता है।
    अब आईये सुविधाओं की बात पर तो किसी प्रकार की शिकायत मत करिये वरना आप मुसीबत में फंस सकते हैं। आपकी बिजली तक काटी जा सकती है गरमी आ रही है, बिजली गुल होने का सिलसिला शुरू हो गया है। दावा किया गया है कि हिमांचल प्रदेश से पहली अप्रैल से बिजली खरीदकर उपभोक्ताओं की दिक्कतें दूर की जा रही हैं। इसकी हकीकत राजधानी में घंटों बिजली गुल रहने के साथ अंधेरे में डूंबे सूबे के अद्दिकतर जिलों में देखी जा सकती है। एक छोटा सा कॉल सेंटर राजधानी लखनऊ में सालों से बन नहीं सका, न ही भुगतान जमा करने की एटीएम मशीन लग सकीं और न ही ऑनलाइन बिलिंग जमा के कम्प्यूटर दुरूस्त बन सके। उपखण्डों में भी हालात में कोई बदलाव नहीं हुए। अधिकारियों, बाबुओं के बर्ताव में भी हेकड़ी बरकरार है।
    बिजली चोरी का हल्ला शक्ति भवन से लेकर ऊर्जा मंत्री के कमरे तक में न जाने कब से मच रहा है। इससे बचने के कारगर उपायों की ओर कदम क्यों नहीं उठाए जाते? महज इसलिए कि इंजीनियरों, हाकिमों व राजनेताओं की काली कमाई बंद हो जाएगी? नहीं तो क्या कारण है कि बयानबाजी से आगे बढ़कर मोबाइल फोन की तर्ज पर बिजली के भी प्रीपेड मीटर सूबे भर में क्यों नहीं लगाए जाते? प्री-पेड मीटर व्यवस्था से उपभोक्ता व ऊर्जा विभाग दोनों को कोई परेशानी नहीं होगी।
    बहरहाल 31 मार्च निबट गया। अब बिजली आवाजाही का मौसम आ गया है। वहां भी कमाई के साधन तलाशे जाएंगे?

वंदेमातरम्! वंदेमातरम्!! वंदेमातरम्!!!

राम प्रकाश वरमा
अभी तो अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। खतरे की घंटी बज उठी है। वक्त का तकाजा है कि चिकनी-चिपुड़ी बातों के साथ बदजुबानी के बजाय जनशक्ति की सच्चाई को कबूल कर लेने में ही सियासतदानों की भलाई है। देश आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। उसके सामने कई रास्ते खुले हैं। राष्ट्र कौन सा रास्ता अख्तियार करेगा? एक रास्ता विकास और आम सहमति के साथ सकारात्मक सहयोग का हैं, जिस पर चलकर राष्ट्रीय पुनर्जागरण का बिगुल बजाया जा सकेगा। दूसरा रास्ता वह है, जिस पर बेईमान नौकरशाहों, भ्रष्ट नेताओं और स्वार्थी बनियों ने उसकी इच्छा के विरूद्ध उसे धकेला है। और, वह रास्ता निकम्मे टकराव व साम्राज्यवादी गुलामी की ओर जाता है।
    जिस किसी के पास भी देखने वाली आंखें और सुनने वाले कान हैं, वे जानते हैं कि दिल्ली के जंतर-मंतर पर 97 घंटों के मौन उपवास के बीच उठे ज्वार ने ईमानदारी का, सहयोग का और सच्चाई का रास्ता अख्तियार करने का फैसला लिया। एक लाख कम एक सौ इक्कीस करोड़ भारतीय बदलाव के लिए बेचैन हैं। ये बेचैनी गणराज्य के पुनर्जन्म की भी है। यही वजह थी कि लाखों करोड़ों हाथों में जलती मोमबत्तियों के उजाले में सरकार की हीला-हवाली के बावजूद यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी, महात्मा के पांवों के निशान पर पैर रक्खे अण्णा हजारे की निश्छल मंशा पर विचलित हुईं। निश्चित रूप से वह जानती हैं कि वह राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता, जो सिर्फ अपने पूर्वजों की नकल करता रहेगा। राष्ट्रनिर्माण के लिए जनइच्छाओं को सुनकर सटीक बदलाव करने जरूरी हैं। बेशक नागरिक समाज में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार समाया है। यहां तक मौन जली मोमबत्तियों की खरीद भी भ्रष्टाचार के जरिए की गई कमाई से की गई हो सकती है।
    चौटाला और उमा को दुत्कारने वाले सुविधा भोगी हाथ भी भ्रष्टाचार के ‘मिनरल वॉटर’ से धुले रहे हों, लेकिन उन्हीं की आत्मा से उठी ज्वाला ने उन्हें भ्रष्टाचार के मुखालिफ हुंकार भरने को ललकारा है। वे भ्रष्ट व्यवस्था से किस कदर परेशान हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वे केवल जनलोकपाल बिल पर ही नहीं रूक जाने वाले हैं। इससे भी आगे ‘राइट टू रिकाल’ और देश के लाखों मतलब परस्त अमीर बनियों की आर्थिक अराजकता के मुखालिफ भी आवाज बुलंद करने वाले हैं।
    इस खौफनाक सच्चाई से कैसे इंकार किया जा सकता है कि हम गले-गले तक विदेशी कर्ज के दलदल में फंसे हैं। न केवल फंसे हैं, बल्कि कर्ज की अर्थव्यवस्था ने ही महंगाई और मुद्रास्फीति बढ़ाई और बाजार की ताकतें मजबूत होती गईं। विकास के नाम पर लिया गया कर्ज विनाश के श्मशान निर्माण करने वालों की बपौती होता गया। न गरीबी हटी, न खुशहाली आई। अमीर और अमीर हो गये, गरीब और गरीब। ‘गरीबी हटाओं’ के सिनेमाई सपने ने देश को विश्वबैंक के कसाईबाड़े में जिबह होने के लिए धकेल दिया। आज भारत दुनिया भर के कर्जदार देशों में पंाचवे नंबर पर है। सितंबर 2010 तक 1332194 करोड़ रूपयों का कर्जदार है, भारत। इस कर्ज के ब्याज की किश्तें चुकाने में ही सालाना बजट का एक बड़ा हिस्सा चला जाता है। यह रकम विदेशी मुद्रा में अदा की जाती है, इसीलिए भारतीयों के जीवन के लिए अति आवश्यक चीजों के निर्यात की आंख मूंद कर इजाजत दी जाती है और हमें फांकाकशी के लिए यह कहकर मजबूर किया जाता है कि ‘अभी तीन महीने महंगाई और झेलनी होगी।’ कैसा मजाक है, किसान मेहनत करके अन्न उगाये, मेहनतकाश हाथ उत्पादन बढ़ाएं और लाभ उठाएं देश के चंद बड़े बनिये, दलाल, नौकरशाह और राजनेता। यही वजह है कि पेरिसवासी हाथों से बनाये गये भव्य संसद भवन में बैठने वालों को ‘सिविल सोसाइटी’ की साझेदारी बर्दाश्त नहीं हो रही। बेशक संविधान की रचना कानून के पंडितों ने की है लेकिन देश की आजादी महान विचारकों, लोगों के पसीने, आंसुओं, परिश्रम और साहसी योद्धाओं के बलिदान बदले मिली हैं हमें शांति समर्थकों के रास्ते पर चलना ही होगा।
    देश में निजी धन बल की समानांतर सरकारें चलाई जा रही हैं और उन्हें लगातार चलाए रखने के लिए नौकरशाह, साहूकार और दलाल नेता, सब प्रयासरत हैं। देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में 57 करोड़ रूपया विभिन्न राजनैतिक दलों से चुनाव आयोग ने पिछले महीने में जब्त किया हैं, इसमें अकेले 42 करोड़ रूपये तमिलनाडू से जब्त किये गये हैं। इसी राज्य में 57 हजार मुकदमें आचार संहिता उल्लंघन के भी दर्ज हुए हैं। इस राज्य के मुखिया करूणानिधि के परिवार में 24 हजार करोड़ की सम्पत्ति है। यही हाल दूसरे राजनैतिक परिवारों का है। सियासतदानों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के टकराव और बनियों के हाथों में खेलते राजनीति में नौसीखिये देश को गुलामी की ओर धकेलने का दांव लगाए हैं। सावधान! इतिहास का चक्र घूम चुका है। 1857 के गद्दार राव दुल्हाजू (झांसी के सरदार) की नस्ल को गांध्ीा की लाठी से देश के बाहर हांकने की हलफ युवा भारत ने उठा ली है।
    हम पहले ही लिख चुके हैं कि ‘ग्लोबलाइजेशन’ के जरिये हमारे मुंह से निवाला छीना जा रहा है। सब कुछ बाजार में बेचने की साजिश की जा रही है, यही षड़यंत्रकारी चिंघाड़ रहे हैं कि लोकतंत्र खतरे में है। और तो और महाराष्ट्र के बारामती के एक शख्स ने ‘अन्ना’ को भी बाजार में खड़ा कर दिया। उसने पुणे से 600 रुपयों में अन्ना के गांव धुमाने, उनके दर्शन कराने के लिए बस टूर शुरू कर दिया हैं। यह वही बारामती है, जहां से शरद पवार सांसद हैं। इससे भी आगे अन्ना के नाम पर टी शर्ट, सौंदर्य प्रसाधन, टैटू, एसएमएस व फेस बुक के जरिए बड़ा बाजार खड़ा करने की साजिश देशी-विदेशी साहूकार/बनिये कर रहे हैं। पहले ही देश का करोड़ों रूपया विध्वंस के कारोबार में लगा है। इसके पुख्ता सुबूत हैं देश मंे आये दिन पकड़े जाने वाले हथियारों और जाली नोटों की तादाद।
    हमें सन् 1960 के भूखे-नंगे वर्षाें को याद करते हुए बड़ा दुख होता है, जब हाथ में कटोरा लेकर अमेरिका की चौखट पर खड़ा था, भारत। आज लाखांे टन अनाज सड़ रहा है और बेगैरत मंत्री उसे गरीबों में बांटने के नाम पर आंखे लाल-पीली करने की धृष्टता कर रहे हैं। यह कैसा ‘जनतंत्र’ है? तो सत्ता के नशेड़ियों को फिर से प्रजातंत्र की परिभाषा बताने के लिए वंदेमातरम्! वंदेमातरम्!! वंदेमातरम्!!! का जयघोष करना होगा।